ब्लोगवाणी के निरर्थक रेटिंग का सच

ब्लोग्वाणी 'आज की पसंद' के नाम से एक रेटिंग देता है। जिससे बहुत सारे लोग असंतुष्ट रहते हैं। (एक चिंतित हिन्दुसतानी यहाँ देखें) और मैं उन सबसे सहमत हूँ क्यूंकि इस तरह की कोई भी रेटिंग सही मायनों मे बेकार की है जिसे कोई भी ग़लत तरीके से इस्तेमाल कर सकता है। और इसके लिए किसी भीड़ का होना भी आवश्यक नहीं है। रेटिंग के बारे मे थोडी बहुत जितनी भी तकनीकी जानकारी मुझे है, वो मैं बताना चाहता हूँ।


रेटिंग करने में कोई भी वेबसाईट दो चीजों का ध्यान रखता है। पहली ये कि वो आपके ही ब्राउजर पर एक छोटी से फाइल स्थापित करता है जिसे कुकी कहते हैं। और दूसरी कि वो आपका आईपी पता नोट कर लेता है। और हर बार जब आप रेटिंग करते हैं तो वो सबसे पहले आपका कुकी चेक करता है कि कहीं आप पहले ही तो रेट नही कर चुके हैं। लेकिन चूकि ये कुकी आपके ब्राउजर मे स्थापित है, इसे आप थोडी सी तकनीकी जानकारी से मिटा सकते हैं। इसलिए आईपी पता भी नोट किया जाता है। परन्तु बहुत सारे लोग जो किसी कार्यालय या तकनीकी संस्थान से कार्य कर रहे होते हैं, वो एक प्रोक्सी सर्वर के द्वारा इंटरनेट से जुड़े होते हैं। इन मामलो में आप अपना आईपी पता स्वयं परिवर्तित कर पाते हैं।

सो, यदि हम अपना आईपी पता परिवर्तित कर सकें। और कुकी को मिटाने कि जानकारी हो तो ऐसे किसी भी रेटिंग प्रणाली को निरर्थक किया जा सकता है।

तो यही मैंने किया। परिणाम देखिये:
जैसा कि आप उपरोक्त चित्र में देख सकते हैं कि ७ बार पढी गई चीज १० लोगों की पसंद है।

थोडी देर में इन्होने वापस मेरी रेटिंग रिसेट कर दी। (शायद प्रोक्सी सर्वर के आईपी के अनुसार) जो कि आपलोगों को सही प्रतीत हो सकता है। लेकिन अब समस्या यहां भी आती है कि जो फोर्मुला मेरे बदले हुए आईपी को थोडी देर बाद मिटा देता है, वो फोर्मुला तो मेरे साथ मेरे संस्थान मे रह रहे ५००० लोगों के आईपी को मिटा देगा। (मतलब उनकी रेटिंग का कोई महत्व ही नहीं?)

और अब जाते जाते एक और मजेदार चीज देखिय।
एक जगह पोस्ट को २ लोगों की पसंद बता रहे हैं और उसी पृष्ट पर एक जगह ४ की।

गोपाला गोपाला! ये कैसा गड़बडझाला?

9 comments:

azdak

March 12, 2008 at 1:34 PM

भेरिये गुड..

ghughutibasuti

March 12, 2008 at 2:50 PM

यह रेटिंग, टिप्पणियों का मोह कुछ बचकाना तो है परन्तु स्वाभाविक भी है । फिर भी जिन्हें लीकना पसन्द है वे लिखते जाएँगे । वैसे यदि सच में कुछ पसन्द आए तो लोगों को उसे पसन्द आया क्लिक करने में आलस नहीं करना चाहिये । हम तो जब अपना लिका पसन्द आ जाए तो उसे भी क्लिक कर आते हैं । :)
घुघूती बासूती

ghughutibasuti

March 12, 2008 at 2:51 PM

यह रेटिंग, टिप्पणियों का मोह कुछ बचकाना तो है परन्तु स्वाभाविक भी है । फिर भी जिन्हें लीकना पसन्द है वे लिखते जाएँगे । वैसे यदि सच में कुछ पसन्द आए तो लोगों को उसे पसन्द आया क्लिक करने में आलस नहीं करना चाहिये । हम तो जब अपना लिखा* पसन्द आ जाए तो उसे भी क्लिक कर आते हैं ।
घुघूती बासूती

VIMAL VERMA

March 12, 2008 at 6:22 PM

मशीन है भाई, सब ब्लॉगियों ने मिलकर कनफ़्फ़ूज़्ड कर दिया है मशीन को समझे कि नहीं? खैर कन्फ़्यूज़्ड हम भी कम नहीं है,पर आपकी फोरेन्सिंक जाँच बड़ी ठोस है,बहुत बहुत शुक्रिया,खैर हमको कोई सीढ़ी उढ़ी चढ़ना भी नहीं हैं..जो हम इसको लेकर इतना परेशान हों

इरफ़ान

March 12, 2008 at 7:07 PM

Boffaayin.

Sanjay Tiwari

March 13, 2008 at 10:48 AM

अच्छी जानकारी. लोगों को यह समझना चाहिए और रेटिंग वेटिंग के चक्कर में पड़े बिना अपना काम करना चाहिए.

Anonymous

March 23, 2008 at 11:09 AM

This comment has been removed by a blog administrator.
Anonymous

April 27, 2008 at 9:55 AM

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Alpana Verma

June 30, 2008 at 6:57 PM

baat to pate ki hai!

sahi article likha hai--padha gaya 1baar aur rating 5 !